नहा
रही घर की दीवारें, मस्त मगन ऊंची मीनारें |
मेघ
घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें ||
मन
करता है नाव बना के, कागज़ को पानी में छोड़े,
नक़ली
नाले के हम पीछे, उसे पकड़ने को फिर दौडें,
उम्र
धरी कोने में हमने, बौरा रहें हैं सांझ सकारे |
मेघ
घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |१|
न
करता है राग छेड़ के, तुम्हे प्रिये मैं आज पुकारूं,
झरती
बूंदों से भीगो तुम, मंत्रमुग्ध सा आज निहारूं,
होने
दो गठबंधन प्रियतम, बनी रहें अपनी सरकारें |
मेघ
घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |२|
मन
करता है बन पतंग सा, दूर गगन में उड़ता जाऊं,
कारे
बदरा छुप मत जाना, बाहों में भर चढ़ता जाऊं,
शांत
करो तपती अवनि को, दूर मिटें बढ़ती तकरारें |
No comments:
Post a Comment