Tuesday, August 15, 2017

मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |



नहा रही घर की दीवारें, मस्त मगन ऊंची मीनारें |

           मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें ||


मन करता है नाव बना के, कागज़ को पानी में छोड़े,

          नक़ली नाले के हम पीछे, उसे पकड़ने को फिर दौडें,

उम्र धरी कोने में हमने, बौरा रहें हैं सांझ सकारे |

           मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |१|

न करता है राग छेड़ के, तुम्हे प्रिये मैं आज पुकारूं,

          झरती बूंदों से भीगो तुम, मंत्रमुग्ध सा आज निहारूं,

होने दो गठबंधन प्रियतम,  बनी रहें अपनी सरकारें |           

            मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |२|

मन करता है बन पतंग सा,  दूर गगन में उड़ता जाऊं,

             कारे बदरा छुप मत जाना, बाहों में भर चढ़ता जाऊं,

शांत करो तपती अवनि को, दूर मिटें बढ़ती तकरारें |

            मेघ घनेरे तुम क्या आये,  उड़ा रही मन में बौछारें |३|

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