Tuesday, August 15, 2017

एक शाम पुरानी यादों की

एक शाम पुरानी यादों की .
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 दोस्तों, कुछ लिखने की सोच रहा था | तो ख़याल आया कि ज़रा ढूँढू तो क्या कुछ मर गया है हमारे आस पास |
और तलाशा तो मिला,
कि सच में मर गए हैं, शामियाने, कनातें और चांदनी, कारखाने, मिलें और आमदनी, पर सिर्फ इतना नहीं ...
अगर कुछ नया जन्मा है तो बहुत कुछ मरा भी है इस दौर ए तरक्क़ी में |
बस इसी के इर्द गिर्द लफ़्ज़ों ने सजाई है एक इमारत आपके लिए.....गौर फरमाएं

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