क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
जिस भाव को मैंने जिया नही |
और दर्द क्या जानू नीलकंठ का,
विष -घट को जब पिया नही ||
क्या खगव्रन्दों के कंठों से,
कलरव को साज मिला होगा |
क्या झर झर झरते झरनों से,
नदियों को राग मिला होगा |
क्या प्यार को जीना है जाना,
जब प्यार किसी से किया नही |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
जिस भाव को मैंने जिया नही |१|
मेघों के घनन घनन से क्या,
धरणी का भाग्य जगा होगा |
और प्यास पपीहे की सुनकर,
बादल रह गया ठगा होगा |
खुलकर वो बरसा होगा क्या,
सन्देश किसी को दिया नहीं |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
जिस भाव को मैंने जिया नही |२|
क्या सुनकर तानें मुरली की,
रुकमनी का रूप सजा होगा |
घुंघरूं की छनन छनन से क्या,
मधुमय संगीत बजा होगा |
कान्हा की प्रेम लगन है ऐसी,
झीनी चुनरिया को सिया नहीं |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
जिस भाव को मैंने जिया नही |३|
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