Tuesday, August 15, 2017

क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,

क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,




क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
                जिस भाव को मैंने जिया नही |
और दर्द क्या जानू नीलकंठ का,
                विष -घट को जब पिया नही ||

 


क्या खगव्रन्दों के कंठों से,
         
कलरव को साज मिला होगा |
 
क्या झर झर झरते झरनों से,
         
नदियों को राग मिला होगा |
क्या प्यार को जीना है जाना,
             
जब प्यार किसी से किया नही |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
              
जिस भाव को मैंने जिया नही ||
 

मेघों के घनन घनन से क्या,
         
धरणी का भाग्य जगा होगा |
और प्यास पपीहे की सुनकर,
         
बादल रह गया ठगा होगा |
खुलकर वो बरसा होगा क्या,
               
सन्देश किसी को दिया नहीं |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
                 
जिस भाव को मैंने जिया नही  ||
 


क्या सुनकर तानें मुरली की,
          
रुकमनी का रूप सजा होगा |
घुंघरूं की छनन छनन से क्या,
         
मधुमय  संगीत  बजा  होगा |
कान्हा की प्रेम लगन है ऐसी,
           
झीनी चुनरिया को सिया नहीं |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
              
जिस भाव को मैंने जिया नही  ||

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