Tuesday, August 15, 2017

मेघ मल्हारों का मौसम

मेघ, मल्हारों का मौसम,

         भीगे त्योहारों का मौसम |

यौवन जैसा बदरा बरसे,

          तपते अंगारों का मौसम ||


रक्त शिराओं में व्याकुल,

           मुक्त घटाओं में व्याकुल |

गंध अनोखी  सावन की,

            सुप्त गुफाओं में व्याकुल |

‘हरे’ से हारे हैं हम दोनों

          बढ़ते मनुहारों का मौसम |

 मेघ, मल्हारों का मौसम,

         भीगे त्योहारों का मौसम ||


दहके तन की आग बुझा,

        महके मन के भाग्य जगा |

प्रेम गीत होठो से गूंजे,

        कोई तो ऐसा राग सुझा ||

कान्हा की बंसी है गूंजे,

      कालिंदी धारों का मौसम |

मेघ, मल्हारों का मौसम,

       भीगे त्योहारों का मौसम ||


एक शाम पुरानी यादों की

एक शाम पुरानी यादों की .
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 दोस्तों, कुछ लिखने की सोच रहा था | तो ख़याल आया कि ज़रा ढूँढू तो क्या कुछ मर गया है हमारे आस पास |
और तलाशा तो मिला,
कि सच में मर गए हैं, शामियाने, कनातें और चांदनी, कारखाने, मिलें और आमदनी, पर सिर्फ इतना नहीं ...
अगर कुछ नया जन्मा है तो बहुत कुछ मरा भी है इस दौर ए तरक्क़ी में |
बस इसी के इर्द गिर्द लफ़्ज़ों ने सजाई है एक इमारत आपके लिए.....गौर फरमाएं

लग गयी तम की नज़र दिनमान को, आंधियां सब ले उड़ी अभिमान को |

लग गयी तम की नज़र दिनमान को,


           आंधियां सब ले उड़ी अभिमान को |


वक़्त की साज़िश यक़ीनन है बहुत,


            बस मिलेंगी कुछ घडी इंसान को ||


 


काली घटाओं से घिरा आज क्यूँ,


            मेरे दर्प का जो कभी अहसास था,


बादलों में खो रहा अस्तित्व है,


            गर्व बनकर जो कभी मेरे पास था,


मृत्यु शायद अब हरे इस दर्द को,


             लेके चले गोदी में उठा संतान को |


वक़्त की साज़िश यक़ीनन है बहुत,


            बस मिलेंगी कुछ घडी इंसान को ||


 


स्रष्टि की कैसी नियति, कौन जाने,


           फिर कहीं जन्मे, किसी भी रूप में,


फिर सर उठाएं वासना संसार की,


           फिर छाँव मिले  या चलें यूं धूप में,


फिर रचे संसार प्रणय की वेदना,


           फिर मिले रति रात में अन्जान को |


वक़्त की साज़िश यक़ीनन है बहुत,


           बस मिलेंगी कुछ घडी इंसान को ||


 


यूँ चले संसार समय की गति लिए,


           युग बदलते जा रहे सब अनवरत,


एक क्षण विश्राम का ना मिल सका,


           गूढ़ जीवन की खुली ना एक परत,


इस बड़े ब्रम्हाण्ड में हम हैं ही क्या,


           कोई  बतलाये मतवाले इंसान को | 


वक़्त की साज़िश यक़ीनन है बहुत,


           बस मिलेंगी कुछ घडी इंसान को ||


 

मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |



नहा रही घर की दीवारें, मस्त मगन ऊंची मीनारें |

           मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें ||


मन करता है नाव बना के, कागज़ को पानी में छोड़े,

          नक़ली नाले के हम पीछे, उसे पकड़ने को फिर दौडें,

उम्र धरी कोने में हमने, बौरा रहें हैं सांझ सकारे |

           मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |१|

न करता है राग छेड़ के, तुम्हे प्रिये मैं आज पुकारूं,

          झरती बूंदों से भीगो तुम, मंत्रमुग्ध सा आज निहारूं,

होने दो गठबंधन प्रियतम,  बनी रहें अपनी सरकारें |           

            मेघ घनेरे तुम क्या आये, उड़ा रही मन में बौछारें |२|

मन करता है बन पतंग सा,  दूर गगन में उड़ता जाऊं,

             कारे बदरा छुप मत जाना, बाहों में भर चढ़ता जाऊं,

शांत करो तपती अवनि को, दूर मिटें बढ़ती तकरारें |

            मेघ घनेरे तुम क्या आये,  उड़ा रही मन में बौछारें |३|

क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,

क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,




क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
                जिस भाव को मैंने जिया नही |
और दर्द क्या जानू नीलकंठ का,
                विष -घट को जब पिया नही ||

 


क्या खगव्रन्दों के कंठों से,
         
कलरव को साज मिला होगा |
 
क्या झर झर झरते झरनों से,
         
नदियों को राग मिला होगा |
क्या प्यार को जीना है जाना,
             
जब प्यार किसी से किया नही |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
              
जिस भाव को मैंने जिया नही ||
 

मेघों के घनन घनन से क्या,
         
धरणी का भाग्य जगा होगा |
और प्यास पपीहे की सुनकर,
         
बादल रह गया ठगा होगा |
खुलकर वो बरसा होगा क्या,
               
सन्देश किसी को दिया नहीं |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
                 
जिस भाव को मैंने जिया नही  ||
 


क्या सुनकर तानें मुरली की,
          
रुकमनी का रूप सजा होगा |
घुंघरूं की छनन छनन से क्या,
         
मधुमय  संगीत  बजा  होगा |
कान्हा की प्रेम लगन है ऐसी,
           
झीनी चुनरिया को सिया नहीं |
क्या गीत लिखूं उस भाव पर मैं,
              
जिस भाव को मैंने जिया नही  ||

Monday, August 14, 2017

कायांतरण

"कम ऑन, यू कैन डू इट" सोम ने सूरज के आत्मविश्वास को जगाने के लिए उसके काम में हैडफ़ोन ठूंस दिया और रिकॉर्ड प्लेयर पर ब्रायन एडम का नाइंटी सिक्स का आया सुपर हिट सॉंग चला दिया.." हैव यू रियली लव्ड अ वुमन". सूरज पूरी ताक़त लगाकर गाने के लिरिक को समझने कि कोशिश कर रहा था.लेकिन हमेशा कि तरह एक बार फिर वो हार गया और खिसियाया सा सोम पर झुंझला पड़ा ..नहीं होगा मुझसे ये सब. मुझे नहीं समझ आता ये क्या गा रहा है . सोम हंसने लगा और तेज़ तेज़ आवाज़ में गाने लगा ...

                   टू रिअली लव अ वुमन
                   टू अंडरस्टैंड हर - यू गोट्टा नो हर डीप इनसाइड
                    हेअर एव्री थॉट- सी एव्री ड्रीम

सोम की इस हरकत पर सूरज को भी हंसी आ गयी और दोनों हॉस्टल के रूम में इस लव सॉंग पर जॉन ट्रेवोल्टा कि तरह पेल्विक मूव चलाने लगे. सूरज और सोम कि दोस्ती को हालांकि बहुत लंबा अरसा नही हुआ था, पर दोनों के बीच की बॉन्डिंग ज़बरदस्त हो गयी थी.

सच ही तो है मुंबई जैसे महानगर में रिश्तों के दरमियान तो बस शतरंज कि बिसात बिछी रहती है, जहां सब बस मोहरे हैं. शह और मात के इस खेल में दोस्ती का वो अन्दाज् देखने को कहाँ मिलता है, जो सोम और सूरज के बीच था. अभी सूरज को सपनो की इस नगरी में जुमा जुमा कुछ महीने ही तो बीते थे. कितने सारे बड़े बड़े सपने लेकर उतरा था वो दादर स्टेशन में आज से लगभग आठ महीने पहले. पच्चीस बरस का युवा, ढेरों सपने और मायानगरी.

सोम की और उसकी मुलाक़ात एक बहुत बड़े परिवर्तन कि ओर इशारा कर रही थी. अभी सूरज को सोम के हॉस्टल में पैरासाईट हुए कुछ ही महीने हुए थे. दरअसल सूरज एक अदद नौकरी कि तलाश में इस शहर आया था . हालांकि उस दौर के हर नौजवान कि तरह उसकी आँखों में भी ढेरों सपने चमकते थे. बहुत ऊंची उड़ान भरना चाहता था वो भी. पर जब वो ज़मीनी हकीकत से रूबरू हुआ तो उसका आत्मविश्वास डोलने लगा था. और वो वापस लौटने की तैयारी में लग गया था. तभी किसी दोस्त ने उसे सोम से मिलने को बोला और उनकी ये मुलाक़ात दोस्ती कि अनोखी नींव डाल गयी जो कि सूरज कि जिंदगी को एक नए आसमा कि ओर ले जा रही थी.

सोम बहुत जल्द ही डॉक्टर सोम बनने जा रहा था. मेडिकल कॉलेज में उसका अंतिम वर्ष था. अच्छी अंग्रेज़ी, अंग्रेजी गाने,अच्छे कपडे और आधुनिक जीवन शैली वाले सोम को एक छोटी नौकरी करने वाले सूरज में ऐसा क्या दिखा की दोनों के बीच दोस्ती ने एक मधुर रिश्ता अख्तियार कर लिया था.

क्या हुआ बॉस .. कहाँ खो गये. सोम लगभग परेशान करने के अंदाज़ में सूरज से बोला. " अरे मेरे ग्राम प्रधान, मुंबई में रहना है तो बदलना होगा, वरना ना तो अच्छी नौकरी मिलेगी और ना ही छोकरी. गेट रेडी, वे नीड तो मूव. पहले माटुंगा चलेंगे. फिल कॉलिन के नये सोंग्स आये हैं, एवर लास्टिंग लव सोंग्स. कैसेट को रिकॉर्ड कराना है, उसके बाद अपन चलेंगे फैशन स्ट्रीट. देखते हैं नया क्या है . और हाँ कल सन्डे है . प्लान करो, चेम्बूर चलना है. याद है साले या भूल गये, डुप्लिकेट 'पेपे ' कि जीन्स वहाँ बहुत सस्ती मिलेगी और फिटिंग भी मस्त.
चल भाई जो तेरा इरादा, साला दिनभर नौकरी के धक्के खाओ, शाम को बॉस की गाली सुनो. वापस आकर चोला उतारो बोले तो नौकरी की यूनी फॉर्म और फिर आधुनिक बननेके लिए सुनो अंग्रेजी गाने, बोलो अंग्रेजी और देखो अंग्रेजी पिक्चर.

अभी पीछे दो पिक्चर देखी थी एक थी ' ब्रोकन एरो' और दूसरी जेम्स बांड की ' टुमारो नेवर डायस '. एक ओर जहां सोम के सारे दोस्त फुल मज़ा ले रहे थे, वही अपने सूरज बाबू अपनी भंगिमाओं को उनके अनुसार बदल रहे थे. बाकी पिक्चर तो उन्हें समझ आ आणि थी ना आई.

कुछ ऐसे बदल रहा था सोम सूरज को.सोमकेवापसआवाज़ देने पर सूरज तेज़ी से बाहर कि ओर निकला. उसने ब्लैक जीन्स के साथ चेक कि शर्ट डाली हुई थी और नीचे वुडलैंड के शूज. अब सोचिये वुडलैंड के शूज कुछ ही दिनों में इतने पुराने लगने लगे थे, कि सूरज का उन्हें पहनने का मन नही करता था. अब ये चोर बाज़ार वाले भी ना, चोरी के नये जूते तो वापस शोरूम में भेज देते हैं शायद.

सूरज ने अपनी एम् एच 02 वी 5039 पर एक किक लगाईं, हेलमेट लगाया और दोनों उड़ चले माटुंगा की ओर............... ( क्रमशः )

Friday, February 3, 2017

मल्टी-टास्किंग आपकी क्षमताओं को कम करती है.
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एक बहुत पुरानी कहावत है, JACK OF ALL AND MASTER OF NONE. 

I do agree with the fact that MULTITASKING IS NOTHING BUT KILLING YOUR PRODUCTIVITY.
अक्सर ऐसा होता है, कि हम एक ही समय में बहुत सारी चीज़ें करने लगते हैं, और ये कहीं ना कहीं, हमारे उस मास्टर स्ट्रोक से हमें दूर ले जाता है, जो कि ज़रूरी है, मास्टरी हासिल करने के लिए.

डार्विन का स्पीशीज को लेकर ओबसेशन ही उन्हें कालजई डार्विन बनाता है, सचिन का मास्टर ब्लास्टर बनना उनके बैट से निकले उनके असंख्य मास्टर स्ट्रोकस का ही नतीजा है.

पर अक्सर ऐसा होता नही है, जैसे मेरे एक दोस्त ने मुझे सलाह दी, कि अगर मैं प्रेरक वक्ता के रूप में अपने आप को VISUALIZE करता हूँ, तो शायद मेरे लिए मेरे उस ख्वाब को हासिल करना आसान होगा, जिसके लिए मैं COMMITTED हूँ.

पर मेरा भी कहीं ना कहीं मन भटक जाता है, अब जैसे मेरा गीतों और कविताओं के सृजन से प्यार. लाख रोकूँ कि अब नही पर कलम रूकती ही नही.....और कुछ ना कुछ सृजनात्मक हो ही जाता है.
अब कल वसंत पंचमी से अपने आप को रोक रहा था, कि कुछ नही लिखूंगा, पर सॉरी, नही रोक पाया......और कलम ने ये सृजन कर ही डाला...

फिर भी मेरा ऐसा मानना है, की परफेक्शन के लिए हमें मल्टी टास्किंग से दूर भागना होगा, कारण साफ़ है, बहुत थोडा वक़्त है, और बहुत कुछ करना है जीवन में....
तो आज के सृजन पर गौर किया जाए /// लीजिये आप के लिए...

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Monday, January 16, 2017

प्रेम एक शाश्वत भाव, कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा।

प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया है। प्रेम की ऊर्जा से ही प्रकृति निरंतर पल्लवित, पुष्पित और फलित होती है। युगों से चली आ रही प्रेम कहानियाँ आज भी बदस्तूर जारी हैं। प्रेम की अनुभूति अपने आपमें बिरली, अद्वितीय और बेजोड़ है। किसी से प्यार करना या प्यार में होना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है।
यह क्यों होता है? कैसे होता है? कब होता है? किससे होता है?
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क्या ज़रूरत जानने की.
देखिये एक नये तरह से सृजित किया है मैंने ये प्रेम गीत ...
और हाँ कल पक्का कुछ आज के सामाजिक सरोकार वाली पोस्ट..
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प्रिय पास बैठो गुनगुनाओ, 
आँखों से आँखे मिलाओ,
जादू फिर एक बार कर दो |१|

रात्रि गहरा तम निकट था,
ये सुनहरा मन विकट था |

 
आवाज़ तुमको ढूँढती थी,
या झींगरों सी गूंजती थी |

 
रात्रि बीती भोर निखरी,
सुनहरी नव धूप बिखरी |

अब तो तुम सृंगार कर दो |२|
जादू फिर एक बार कर दो ...................

दर्पण में खुद को झाँक लो,
ठहरी ठहरी सी सांस लो |


खिलखिला के हंसो फिर,
उँगलियों को कसो फिर |


देहरी को आना लांघती,
बन्धन सारे तुम तोड़ती |
जीवन ये तुम वार कर दो |३|

 जादू फिर एक बार कर दो ...................

आओ हथेली को मिलाकर,
जीवन परिधि को सजाकर |


है भाग्य से एक बात बोले,
रहस्यमय एक राज़ खोलें |


साथ जन्मों का लिखा है,
भाग्य रेखा में दिखा है |


नूतन खिला संसार कर दो |४|

जादू फिर एक बार कर दो ||