Friday, April 10, 2020

प्रिय दोस्तों,
आज सुबह से मन बार बार एक ही प्रश्न कर रहा था, कि आखिर दीपक क्यूँ जलाया जाए. ढेरों सवाल जवाब आ रहे थे मन में. और अंत में चकित क्र देने वाले जवाब आने लगे.
जैसे कि कैसे एक चढ़ाई के दौरान सारे मजदूर एक साथ तेज़ आवाज़ में ताक़त लगाते है , एक सामूहिक ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं और लक्ष्य प्राप्त करते हैं. सच ही तो है, सबसे बड़ी ताकत समूह की ताक़त है. आशावाद की ताक़त है.
सत्तर हजार साल के पीछे की दुनिया को अवलोकन करें तो वो समूह ही था होमो सपिएंस का, जो नार्थ अफ्रीका से निकलकर पूरी दुनिया में छा गया.
समूह की शक्ति औरआशावाद, जीने की जिजीविषा और किसी अज्ञात शक्ति के प्रति चैतन्य भाव ही हमे अंत में विजयी बनाएगा.
आज रात का दीपिकोत्स्व जब सैटेलाइट से सम्पूर्ण विश्व देखेगा तो उसे ज्ञात होगा हमारा आत्मबल . हम निराश नही हैं बिलकुल .... हम इस जंग को भी जीतेंगे , ज़रूर जीतेंगे .
एक गीत लिखा है अभी ... आइये डालिए अपनी नज़र. गीत स्रजन की प्रक्रिया में जितना महत्व भाव का है, उतना ही मीटर का और गेय शैली का भी होता है

टोना टुटका मानो, या फिर इसे ज्ञान विज्ञान |
ले संकल्प जलाना दीपक, लो इसका संज्ञान ||
घिरते जब अवसादों में ,
औ गिरती बर्फ़ इरादों में |
जीवन ऊपर संकट हो,
औ हो दूरी संवादों में ||
भारत माता के आंचल में, हो प्रकाश परिधान |
ले संकल्प जलाना दीपक, लो इसका संज्ञान ।1।
हैं सब स्थिर घर के अंदर,
चिंता लहरें हृदय समन्दर |
क्षण क्षण टूटे मन बल,
हो पोरस या सम्राट सिकन्दर |
होगा ही अवतार कोई जब, पास दिखे अवसान |
ले संकल्प जलाना दीपक, लो इसका संज्ञान |२|
अंतर्मन की आशा से,
उपजी एक परिभाषा को |
गाँठ बाँध लेना होगा,
जीवन की अभिलाषा को|
संकट में जब घिर आएं, हों जोशीले अभियान |
ले संकल्प जलाना दीपक, लो इसका संज्ञान।3।

Friday, June 1, 2018

रिश्ते जब रिसते हैं,
हम सब  पिसते हैं.|

आखिर क्या है ये रिश्तों के मध्य जीतने की गणित . कौन सा फार्मूला लगता है और कैसे हम निभा ले जाते हैं .
शायद ये आत्म चिन्तन का विषय है, या फिर मनोवैज्ञानिको के लिए "TRANSACTION ANALYSIS" को समझाने का एक और मौका....जो भी हो... कुछ टूटे फूटे शब्दों से एक गीत बना है. नज़र डालिए.



मन बहका बावरा जाने क्यूँ,
जाने, मन को क्या पाना था |
बस सम्बन्धों केअनुबंधों में,
पल दो पल को इतराना था ||

म्रग तृष्णा सा संसार दिखे,
रिश्तों में भी व्यापार दिखे |
संयम खो बैठे आज अगर,
शब्दों में भी औज़ार दिखे |

अपनी मर्जी से सोचो तुम,
क्या हमें तुम्हे बहकाना था |
मन बहका बावरा जाने क्यूँ,
जाने, मन को क्या पाना था |१|

बात रहे यदि मर्यादा की,
ना थोड़ी, ना ज़ियादा की |
कहां कौन फिर मौन रहे,
लाज रखी यदि वादा की |

निभा सका ना जो इसको,
उसे जीवन भर पछताना था |
मन बहका बावरा जाने क्यूँ,
जाने, मन को क्या पाना था |२|


Sunday, February 18, 2018





प्रिय मित्रों,
इतवार की दोपहर और बहुत सारा काम. और जब आप काम से थकते हैं ना तो मन करता है की कुछ रचनात्मक हो जाए | और बस यही रचनात्मकता रचना धर्मिता को नई आयाम देने लगती है | अभी अभी सृजित की है ये कविता |




स्वप्न टूटते ही नए स्वप्न को आकार दो,

जीत की है रीति यही नये कुछ प्रकार दो |

फाड़ दो हार के बादलों को आज तुम,

कर्म की प्रत्यंचा खींच धनुष को टंकार दो ||



हैं खोदते खदान रहे हीरे की तलाश में,

हाथ कुछ लगा नहीं झूठे बस कयास में |

कौन मौन रख यहाँ शांत हो चला गया,

और कौन रुक गया कभी थोड़े प्रयास में ||



मनुज जन्म है मिला जीत का अधिकार दो,

बाजुओं को भींच आज भाग्य को संवार दो |

फाड़ दो हार के बादलों को आज तुम,

कर्म की प्रत्यंचा  खींच धनुष को टंकार दो |१|



क्या हुआ जो ना मिला द्रौण सा कोई अगर,

क्या हुआ जो ना मिली चाहतों की डगर |

क्या हुआ जो रूठता भाग्य भी रहा सदा,

खोजता तू जा मगर स्वप्न सा सजा नगर ||



मौन तोड़ आज अभी वाणी को चीत्कार दो,

राह में जो रोड़े डाले उसे राह में दुत्कार दो |

फाड़ दो हार के बादलों को आज तुम,

कर्म की प्रत्यंचा  खींच धनुष को टंकार दो |२|

Saturday, January 27, 2018

बहुत अरसा हो गया कुछ काव्य सृजन किये हुए. आज मन कर रहा था की कुछ लिखते हैं. बस विचार आते गए और सृजन होता गया.

Tuesday, August 15, 2017

मेघ मल्हारों का मौसम

मेघ, मल्हारों का मौसम,

         भीगे त्योहारों का मौसम |

यौवन जैसा बदरा बरसे,

          तपते अंगारों का मौसम ||


रक्त शिराओं में व्याकुल,

           मुक्त घटाओं में व्याकुल |

गंध अनोखी  सावन की,

            सुप्त गुफाओं में व्याकुल |

‘हरे’ से हारे हैं हम दोनों

          बढ़ते मनुहारों का मौसम |

 मेघ, मल्हारों का मौसम,

         भीगे त्योहारों का मौसम ||


दहके तन की आग बुझा,

        महके मन के भाग्य जगा |

प्रेम गीत होठो से गूंजे,

        कोई तो ऐसा राग सुझा ||

कान्हा की बंसी है गूंजे,

      कालिंदी धारों का मौसम |

मेघ, मल्हारों का मौसम,

       भीगे त्योहारों का मौसम ||