प्रिय मित्रों,

स्वप्न
टूटते ही नए स्वप्न को आकार दो,
जीत
की है रीति यही नये कुछ प्रकार दो |
फाड़ दो हार के बादलों को आज तुम,
कर्म की प्रत्यंचा खींच धनुष को टंकार दो ||
हैं
खोदते खदान रहे हीरे की तलाश में,
हाथ
कुछ लगा नहीं झूठे बस कयास में |
कौन
मौन रख यहाँ शांत हो चला गया,
और
कौन रुक गया कभी थोड़े प्रयास में ||
मनुज जन्म है मिला जीत का अधिकार दो,
बाजुओं को भींच आज भाग्य को संवार दो |
फाड़ दो हार के बादलों को आज तुम,
कर्म की प्रत्यंचा खींच धनुष
को टंकार दो |१|
क्या
हुआ जो ना मिला द्रौण सा कोई अगर,
क्या
हुआ जो ना मिली चाहतों की डगर |
क्या
हुआ जो रूठता भाग्य भी रहा सदा,
खोजता
तू जा मगर स्वप्न सा सजा नगर ||
मौन तोड़ आज अभी वाणी को चीत्कार दो,
राह में जो रोड़े डाले उसे राह में दुत्कार दो |
फाड़ दो हार के बादलों को आज तुम,
कर्म की प्रत्यंचा खींच धनुष
को टंकार दो |२|
Amazing sensational poem
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