क्या पाया क्या ख्वाब रहा
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मोहब्बत की रवायतें, वादों की इबारतें और तन्हाइयों की रातें, और इनका
ज़िक्र हमेशा से होता आया है | और शायद जज़्बातों को, ख़्वाबों की ताबीर को
अमली जामा पहनाना निहायत मुश्किल बात होती है | बस कुछ ऐसे ही ख़याल आपकी
नज़र .................
Tuesday, December 27, 2016
Thursday, December 22, 2016
चाँद कहाँ तुम छुप कर बैठे
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ये जो ख़याल हैं ना, बहुत भागते हैं | सोचो ये चाँद युगों युगों से मोहब्बत की रवायतों को देख रहा है | एक पखवारा जब वो नही होता है इस आसमान पर तो क्या दिल नही करता उसको तोड़कर टांक देने का अपने महबूब के काँधे पर, ताकि उनके दीदार में कोई खलल ना पड़े |
अब ये ज़रूरी तो नही कि उम्र के इस मोड़ पर मोहब्बत के रंग फ़ीके हो जाए या चाँद हमारे लिए अपने माने बदल दे....
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ये जो ख़याल हैं ना, बहुत भागते हैं | सोचो ये चाँद युगों युगों से मोहब्बत की रवायतों को देख रहा है | एक पखवारा जब वो नही होता है इस आसमान पर तो क्या दिल नही करता उसको तोड़कर टांक देने का अपने महबूब के काँधे पर, ताकि उनके दीदार में कोई खलल ना पड़े |
अब ये ज़रूरी तो नही कि उम्र के इस मोड़ पर मोहब्बत के रंग फ़ीके हो जाए या चाँद हमारे लिए अपने माने बदल दे....
चलिए फिर आइये जी लिया जाए कुछ शब्दों को प्रेम में पगा कर के....
Wednesday, December 21, 2016
जीवन की परिभाषा क्या
Identity or No Entity
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Our Identity is undoubtedly an unavoidable part of all our lives. I strongly believe that each of us should be thoughtful, proactive, and workaholic about our own identity. This thought just came in mind and I thought of penning down a few lines. Enjoy and stay motivated.
Identity or No Entity
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Our Identity is undoubtedly an unavoidable part of all our lives. I strongly believe that each of us should be thoughtful, proactive, and workaholic about our own identity. This thought just came in mind and I thought of penning down a few lines. Enjoy and stay motivated.
Tuesday, December 20, 2016
दिन जल्दी ढल जाते हो, बस कहने को कल आते हो
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प्रिय दोस्तों,
कभी कभी ऐसा नही लगता की समय बहुत तेजी से पंख फैलाकर उड़ता चला जा रहा है |
और लो यहाँ आइना देखा और महसूस हुआ की उम्र ही फिसल गयी मुट्ठी में बंद रेत की मानिंद |
ये जो बारह घंटों की मशक्क़त है ना, बस यही तो है जो कुछ का कुछ किसी को कुछ भी बना देती है | तो दिन से उसके छोटे होने की शिकायत के साथ इस कविता के उत्तरार्ध में आशावाद के चरमोत्कर्ष से भी रूबरू कराता हूँ आपको |
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प्रिय दोस्तों,
कभी कभी ऐसा नही लगता की समय बहुत तेजी से पंख फैलाकर उड़ता चला जा रहा है |
और लो यहाँ आइना देखा और महसूस हुआ की उम्र ही फिसल गयी मुट्ठी में बंद रेत की मानिंद |
ये जो बारह घंटों की मशक्क़त है ना, बस यही तो है जो कुछ का कुछ किसी को कुछ भी बना देती है | तो दिन से उसके छोटे होने की शिकायत के साथ इस कविता के उत्तरार्ध में आशावाद के चरमोत्कर्ष से भी रूबरू कराता हूँ आपको |
इसमें मैंने "हेमल" शब्द का भी इस्तेमाल किया है जिसका मतलब "रक्त" होता है | उम्मीद है एक बार फिर मैंने निभाने की कोशिश की है |
Saturday, December 17, 2016
नैसर्गिक सौन्दर्य समेटे तुम उन्मुक्त हवाओं सी
नैसर्गिक सौन्दर्य समेटे तुम उन्मुक्त हवाओं सी
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आज फिर सृजन का मूड बन गया है... लेकिन शायद इस बार आकंठ प्रेम का स्वरुप ही सामने आएगा.!!!
Friday, December 16, 2016
रिश्ते बदल गये थे कितने
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आज के रिश्ते
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सच है दोस्तों, आज के इस दौर में रिश्तों में भी न जमकर खरीद फरोश्त हो गयी है | और मेरी तरह शायद आपने भी वक़्त के साथ साथ लोगों को आपकी जिंदगी में आते जाते देखा होगा |पर सोलह आने का सवाल तो ये है, कि क्या सच में रिश्तों में भी हमें गुणा भाग लगाने की दरकार होती है, या फिर वाकई रिश्ते अलमस्त निभाये जाने चाहिए | खैर अपनी सोच अपना विचार और अपना व्यवहार ... मैंने तो बस रची हैं इसी के इर्द गिर्द लाइने ये दो चार |||
Monday, December 12, 2016
बेनाम से भी कुछ रिश्ते संग हमारे पल पल चलते
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रिश्तों की अपनी दुनिया होती है | हमारे ना जाने किन किन से कौन कौन से रिश्ते बन जाते है | और इन सभी रिश्तों की संवेदनशीलता का आभाष तभी हो सकता है, जब थोडा वक़्त दे हम, थोडा बैठें , थोडा सोचे और थोडा विचारे ...................
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रिश्तों की अपनी दुनिया होती है | हमारे ना जाने किन किन से कौन कौन से रिश्ते बन जाते है | और इन सभी रिश्तों की संवेदनशीलता का आभाष तभी हो सकता है, जब थोडा वक़्त दे हम, थोडा बैठें , थोडा सोचे और थोडा विचारे ...................
Saturday, December 10, 2016
वो सर्द गुनगुनी धुप
जीवन का आनंद, बीते कल की यादों और आने वाले कल की कल्पनाओं में समाहित होती है | वर्तमान में रहना भी तभी संभव है, जब गुज़रा कल याद आता रहे |
अतीत के चलचित्र से खट्टे मीठे अनुभवों को निकालकर वर्तमान की थाली में सजाया जाए | शायद गुज़रे कल से जुड़ना ही जीवन के नवनिर्माण की सृजनात्मकता संजोये होती है |
बस ऐसे ही कुछ कोमल अहसासों को पिरोने की कोशिश की है एक अंतराल के बाद|
Thursday, December 8, 2016
वो प्यार का मौसम कहाँ गया
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जीवन के दो पक्ष हैं। एक उज्जवल पक्ष है जो मन की प्रसन्नता, खुशी, सफलता और रंजित अभिव्क्ति को अभिव्यक्त करता है तो दूसरा स्याह पक्ष दिनानुदिन की कठिनाइयों, समस्याओं, जटिलताओं और असफलताओं का परास है जो दुख, कष्ट, असन्तोष और वेदना जैसे मनोभावों में अभिव्यक्त होता है। व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन इन्हीं विभावों के स्पर्श के साथ आगे बढ़ते रहने की अनुभव कथा बन जाता है। समस्याएं कठिनाइयां और जटिलताएं जीवन की नियति है तो इस नियति पर विजय पाना हमारा धर्म है। स्याह, उदास और दर्द भरे दिनों से उबरने के लिए ज़रूरी है की मन को कही और ले जाया जाए | ऑफिस के केबिन से बाहर रिमझिम बूंदों का संसार खींच कर ले जाता है और कराता है कुछ सृजन, कुछ शब्दों की शरारत और विचारों की हरारत ......................बस कुछ यूं ही आज फूट पड़े मन के मनके मन से मन तक ........ हाँ एक अरसे बाद .. आप भी लुफ्त उठाइए ..
आँखों ने आँखों को देखा, युगों बाद
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बारिशों का मौसम हो और प्रेम की अनुभूति न हो, ऐसा हो ही नही सकता | मन के किसी कोने में कोई चंचल गुदगुदाहट, बारिश के इस मौसम में काव्य सृजन की प्रेरणा ज़रूर देती है |काव्य को पढ़ने या सुनने से मिलनेवाला आनंद ही रस है। काव्य मानव मन में छिपे भावों को जगाकर रस की अनुभूति कराता है।इठलाते काले बादल, मन को हर्षाती ठंडी-ठंडी बयार और तन को भिगोती बरखा की फुहारें, ये मदमस्त माहौल प्रेरणा देता ही है नव सृजन को | तो चलिए सोचा जाए उन अनगिनत फूलों की खुशबू , रंग-बिरंगी उड़ती तितलियाँ, भौरों की गुंजन और अरुणेन्द्र का ये नव सृजन ...................
तुम सागर मैं रेत का आँचल
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एक ख़याल सा आया मन में, कि सागर और रेत के बीच क्या रिश्ता हो सकता है | बहुत करीब हैं दोनों लेकिन दरम्यान सन्नाटा क्यूँ पसरा रहता है दोनों के बीच | दूर दूर से आती नदियों को तो अपने में समाहित कर लेता है, किन्तु रेत .................और उसका नसीब ....||| बस ख्यालों को सजा डाला मैंने एक प्रेम गीत के रूप में || आइये आप भी इस वियोग सृंगार का आनंद लीजिये ||
तुम नदी सी बहो चंचला
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आज मौसम काफी अच्छा हो रहा था. सुबह से ही धूप बादलों संग आँखमिचौली कर रही थी, घटाएं रह रह कर अंगराई ले रही थीं, हवा के झोंके पायल की धून पर नृत्य कर रही थीं, आज रूप-श्रृंगार की मादकता में लिप्त कवि बन जाने का मन कर रहा था, बरसात और है क्या, किसी प्रेमी के उसकी प्रेमिका के हेतु सन्देश. सावन धरती के उबटन श्रृंगार का समय, जब वसुधा के रूप को सींचा जाता है, हर ओर प्रेम ही महकता है, हवाओं की थिरकन से लेकर, वातावरण के यौवन तक. और ऐसे में कोई चंचला नदी आकर गिरे सब्र के बाँध पर... तो ........................बस
मन की आँखों से यदि ढूंढो
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आज एक बार फिर मन समाचारों की दुनिया से इतर कुछ और लिखने को बाध्य कर रहा है| चलिए आज मौसम के मद्देनज़र कुछ प्यार और उसके अहसासों की बात की जाए| सच तो ये है कि, ज़िंदगी में हम कभी न कभी किसी न किसी के सम्मोहन के बंधते चले जाते है और यही सम्मोहन बदलते मौसमों के साथ नये नये रूप दिखता है | कभी संयोग की संत्रप्त्ता तो कभी वियोग का विलाप| पर सम्मोहन और प्रेम को अगर भौतिक संसार से अलग एक विचारों के दुनिया में जी करके देखा जाए, तो शायद भौतिक दूरी का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है, और किसी भी श्रतु, किसी भी मौसम में उनकी दूरी, निकटता में बदल जाती है |
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आज एक बार फिर मन समाचारों की दुनिया से इतर कुछ और लिखने को बाध्य कर रहा है| चलिए आज मौसम के मद्देनज़र कुछ प्यार और उसके अहसासों की बात की जाए| सच तो ये है कि, ज़िंदगी में हम कभी न कभी किसी न किसी के सम्मोहन के बंधते चले जाते है और यही सम्मोहन बदलते मौसमों के साथ नये नये रूप दिखता है | कभी संयोग की संत्रप्त्ता तो कभी वियोग का विलाप| पर सम्मोहन और प्रेम को अगर भौतिक संसार से अलग एक विचारों के दुनिया में जी करके देखा जाए, तो शायद भौतिक दूरी का अस्तित्व ख़त्म हो जाता है, और किसी भी श्रतु, किसी भी मौसम में उनकी दूरी, निकटता में बदल जाती है |
जीवन के इस मरुस्थल पर
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जीवन जितना व्यस्त आनंद उतना ज्यादा | सच तो यही है, आज को जी लो | पिछले चार दिनों से व्यस्तता अपने चरमोत्कर्ष पर है | २३ अगस्त को लाजपत भवन प्रेक्षाग्रह में हमारे संसंस्थान सालाना प्रोग्राम की तैयारी के साथ साथ 24 अगस्त को उसी स्थान पर मकरंद देशपांडे जी का बहुत ही ज्यादा विख्यात प्ले " सर सर सरला" के मंचन की तैयारियां | और आज का दिन निकला विद्यार्थी सम्मान में, साथ ही कुछ पल परिवार के साथ |कुल मिलाकर लब्बोलुआब ये की ऐसे बीते हैं ये चार दिन की जनाब बस आज और इसी क्षण पर जिए हैं | और सच बोलें, आज पर जीने से बड़ा कोई आनद नहीं | इसी व्यस्ततम समय से निकली ये चार पंक्तियाँ आपकी नज़र | पसंद आये तो आनद उठाइए || आपका ...अरुणेन्द्र
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जीवन जितना व्यस्त आनंद उतना ज्यादा | सच तो यही है, आज को जी लो | पिछले चार दिनों से व्यस्तता अपने चरमोत्कर्ष पर है | २३ अगस्त को लाजपत भवन प्रेक्षाग्रह में हमारे संसंस्थान सालाना प्रोग्राम की तैयारी के साथ साथ 24 अगस्त को उसी स्थान पर मकरंद देशपांडे जी का बहुत ही ज्यादा विख्यात प्ले " सर सर सरला" के मंचन की तैयारियां | और आज का दिन निकला विद्यार्थी सम्मान में, साथ ही कुछ पल परिवार के साथ |कुल मिलाकर लब्बोलुआब ये की ऐसे बीते हैं ये चार दिन की जनाब बस आज और इसी क्षण पर जिए हैं | और सच बोलें, आज पर जीने से बड़ा कोई आनद नहीं | इसी व्यस्ततम समय से निकली ये चार पंक्तियाँ आपकी नज़र | पसंद आये तो आनद उठाइए || आपका ...अरुणेन्द्र
मन भरा उमंगो से
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पिछले तीन दिनों से संस्थान के सेमिनार और सर मकरंद देशपांडे जी के महान प्ले "सर सर सरला" का अविश्वसनीय, अकल्पनीय, अद्भुत प्रस्तुति ने आनंद की असीम अनुभूतियों से ओत प्रोत कर दिया था | अविस्मर्णीय प्रेम की परिभाषा ने प्रेरणा को जाग्रत किया की कि सृजन करो कवि अरुणेन्द्र कुछ प्रेम से भरपूर, जो आनंद के चरमोत्कर्ष तक ले जाए ||| पेश है आपके लिए मेरा ये संयोग श्रंगार का प्रयास ........................
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पिछले तीन दिनों से संस्थान के सेमिनार और सर मकरंद देशपांडे जी के महान प्ले "सर सर सरला" का अविश्वसनीय, अकल्पनीय, अद्भुत प्रस्तुति ने आनंद की असीम अनुभूतियों से ओत प्रोत कर दिया था | अविस्मर्णीय प्रेम की परिभाषा ने प्रेरणा को जाग्रत किया की कि सृजन करो कवि अरुणेन्द्र कुछ प्रेम से भरपूर, जो आनंद के चरमोत्कर्ष तक ले जाए ||| पेश है आपके लिए मेरा ये संयोग श्रंगार का प्रयास ........................
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गुनगुनी धुप सेंकती कविताओं और प्रेम रस में पगे गीतों का साथ किसे नही सुहाता | ए बी सी चैनल के बाद दूसरी बार इस प्रयास को एक कदम और बेहतर करने की उम्मीद के साथ सृंगार से सजा ये गीत आपके लिए गुनगुना रहा हूँ | वक़्त निकाल कर सुनिए गुनगुनाइए मेरा ये प्रेम गीत ..............
.आपका अपना
अरुणेन्द्र
मन की गांठे खोल ..(संबंधों का ट्रांजैक्शन अनालिसिस)
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अक्सर हमारे साथ होता है, कि हमारे आपसी रिश्ते बहुत बनते बिगड़ते रहते हैं| काश ऐसा हो की रिश्ते कभी किसी के साथ बिगडें ही नहीं | और जिस दिन हम अपने आप को इस कद तक ले गए की रिश्ते बिगड़ने ही बंद हो जाएँ, शायद वही हमारे जीवन का परम सुख होगा | सोचिये जैन मुनि तरुण सागर जी ने विशाल ददलानी की बातों को कुछ सोचा ही नही | क्षमा भाव की ऐसी स्थिति तक पहुचना बहुत बड़ा संकल्प है | काश हम सब ऐसे हो जाए और गांधी जी की इगैलिटेरियन सोसाइटी की कल्पना को साकार रूप दे सकें | चलो अगर उतना न सही, तो कुछ कदम तो आगे बढें | सोचिये बस कोई दो रिश्ते जहाँ आप आसानी से वापसी कर सकें | शायद यही फोर्गिवेनेस है और यही मूल मंत्र है असली जीवन का... कुछ ऐसे ही ख्यालों को कविता के रूप में सजाया है आपके लिए
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अक्सर हमारे साथ होता है, कि हमारे आपसी रिश्ते बहुत बनते बिगड़ते रहते हैं| काश ऐसा हो की रिश्ते कभी किसी के साथ बिगडें ही नहीं | और जिस दिन हम अपने आप को इस कद तक ले गए की रिश्ते बिगड़ने ही बंद हो जाएँ, शायद वही हमारे जीवन का परम सुख होगा | सोचिये जैन मुनि तरुण सागर जी ने विशाल ददलानी की बातों को कुछ सोचा ही नही | क्षमा भाव की ऐसी स्थिति तक पहुचना बहुत बड़ा संकल्प है | काश हम सब ऐसे हो जाए और गांधी जी की इगैलिटेरियन सोसाइटी की कल्पना को साकार रूप दे सकें | चलो अगर उतना न सही, तो कुछ कदम तो आगे बढें | सोचिये बस कोई दो रिश्ते जहाँ आप आसानी से वापसी कर सकें | शायद यही फोर्गिवेनेस है और यही मूल मंत्र है असली जीवन का... कुछ ऐसे ही ख्यालों को कविता के रूप में सजाया है आपके लिए
शब्द युगों तक बंद रखे थे
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अज़ब दौर था वो मोहब्बत की रवाज़ों का| दिल धडकते रहते थे और जुबां खामोश | हर कोई इश्क़ में नहीं होता था और न हर किसी में इश्क़ करने का साहस होता था । और अगर इश्क हो गया तो इज़हार .........| अरे कहाँ हो पाता था जनाब | बस चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद ....| तो आज कुछ ऐसा ही लिख रहा हूँ आपके लिए | पर मेरी लेखनी विशुद्ध हिंदी है और आज तो शब्दों में क्लिष्टता भी शायद ज़्यादा हो गयी है, पर मेरा विश्वास है, मुझे आपसे कहना नहीं पड़ेगा कि, " भावनाओं को समझो ".
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अज़ब दौर था वो मोहब्बत की रवाज़ों का| दिल धडकते रहते थे और जुबां खामोश | हर कोई इश्क़ में नहीं होता था और न हर किसी में इश्क़ करने का साहस होता था । और अगर इश्क हो गया तो इज़हार .........| अरे कहाँ हो पाता था जनाब | बस चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद ....| तो आज कुछ ऐसा ही लिख रहा हूँ आपके लिए | पर मेरी लेखनी विशुद्ध हिंदी है और आज तो शब्दों में क्लिष्टता भी शायद ज़्यादा हो गयी है, पर मेरा विश्वास है, मुझे आपसे कहना नहीं पड़ेगा कि, " भावनाओं को समझो ".
वो प्यार का मौसम कहाँ गया, अभिसार का मौसम कहाँ गया
प्रेम तुम क्यूँ मर रहे हो ?
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वो कभी कहते थे, कि प्रेम किसी एक तराज़ू से नहीं तौला जा सकता, ना ही किसी नियम से नियमित किया जा सकता है | ये तो विहंगम भाव है | अनगिनत फूलों की खुशबू, रंग-बिरंगी उड़ती तितलियाँ, भौरों की गुंजन, इठलाते काले बादल, मन को हर्षाती ठंडी-ठंडी बयार और तन को भिगोती बरखा की फुहारें,चाँद की सोलह कलाएं, कहाँ कहाँ नहीं नज़र आता है प्यार प्रणय के शुरूआती दिनों में | पर वक़्त के साथ साथ सब कुछ क्यूँ बदलने लगता है | रूमानियत, अहसास, इशारों को समझने वाली बातें, सब की सब वक़्त निगल आता है और हमें बना जाता है बस एक मशीन | काश की ऐसा हो कि वापस लौटें और फिर गुनगुनाये ...... प्यार हुआ इकरार हुआ ...है प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल.......( ये पोस्ट मेरे सभी शादीशुदा मित्रों के लिए है, और उसमे भी जिन्होंने अपनी शादी की कम से कम १० सालगिरह मना ली है )
प्रेम तुम क्यूँ मर रहे हो ?
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वो कभी कहते थे, कि प्रेम किसी एक तराज़ू से नहीं तौला जा सकता, ना ही किसी नियम से नियमित किया जा सकता है | ये तो विहंगम भाव है | अनगिनत फूलों की खुशबू, रंग-बिरंगी उड़ती तितलियाँ, भौरों की गुंजन, इठलाते काले बादल, मन को हर्षाती ठंडी-ठंडी बयार और तन को भिगोती बरखा की फुहारें,चाँद की सोलह कलाएं, कहाँ कहाँ नहीं नज़र आता है प्यार प्रणय के शुरूआती दिनों में | पर वक़्त के साथ साथ सब कुछ क्यूँ बदलने लगता है | रूमानियत, अहसास, इशारों को समझने वाली बातें, सब की सब वक़्त निगल आता है और हमें बना जाता है बस एक मशीन | काश की ऐसा हो कि वापस लौटें और फिर गुनगुनाये ...... प्यार हुआ इकरार हुआ ...है प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल.......( ये पोस्ट मेरे सभी शादीशुदा मित्रों के लिए है, और उसमे भी जिन्होंने अपनी शादी की कम से कम १० सालगिरह मना ली है )
समय ही शक्ति मान है
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सोचो गहराई से, हमारे हज़ारों सुनहरे दिन चले गए| वापस लौट कर आयेंगे क्या , कभी नहीं | और आने वाले हज़ारों दिनों का हमें कोई पता नही | किसको खबर कल हो न | यदि हम एक ज़िम्मेदार इंसान हैं तभी हम सफल होंगे | हमारे दायित्व परिवार, समाज , स्वास्थ्य, देश एवं इस संसार सभी के लिए है | जिम्मेदारियों को निभाने के लिए उचित समय प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है | इसलिए “काल करे सो आज कर आज करे सो अब”|
सवेरे का सूरज निहारा था पल भर
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हमारे आस-पास जो दुनिया है वह दरअसल बाज़ार है और ये बाज़ार ही भाषा की टकसाल भी है । आए दिन न जाने कितने शब्दों की यहाँ घिसाई, ढलाई होती है । न जाने कितने शब्दों का यहाँ रूप, रंग, चरित्र बदल जाता है| अब प्रेम जैसे अनमोल भाव को शब्द अपनी अपनी सामर्थ से सजाते संवारते रहते हैं | अगर संयोग की अनुभूति है, तो वियोग का दर्द भी | बस ऐसे ही शब्दों की उठा पटक से मन के भाव काव्य प्रवाह का रूप धारण करते रहते हैं | आइये आप भी उठाइए आनंद ..................इस वियोग सृंगार का \ जहाँ शिकायतें तो क्या हैं बस दर्द ही दर्द है................
हसरतें जिंदगी भर कसमासाती रही
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उपमाओं का इस्तेमाल एक गीत को बेहद खूबसूरत बना देता है | कहीं शब्द सांस से घुंघरूं बनकर इठलाते हैं, तो कहीं मौन सबसे ज्यादा बोलने लगता है | सच ही तो है मन के मजीरे तो बजाना ही होते हैं ख्यालों को उड़ान देने के लिए | आपकी नज़र ...एक मुखड़ा और बस एक अंतरा मेरे नव सर्जित गीत का |||
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