Tuesday, December 27, 2016

क्या पाया क्या ख्वाब रहा 
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 मोहब्बत की रवायतें, वादों की इबारतें और तन्हाइयों की रातें, और इनका ज़िक्र हमेशा से होता आया है | और शायद जज़्बातों को, ख़्वाबों की ताबीर को अमली जामा पहनाना निहायत मुश्किल बात होती है | बस कुछ ऐसे ही ख़याल आपकी नज़र .................




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