Thursday, December 8, 2016


तुम सागर मैं रेत का आँचल
-----------------------------
एक ख़याल सा आया मन में, कि सागर और रेत के बीच क्या रिश्ता हो सकता है | बहुत करीब हैं दोनों लेकिन दरम्यान सन्नाटा क्यूँ पसरा रहता है दोनों के बीच | दूर दूर से आती नदियों को तो अपने में समाहित कर लेता है, किन्तु रेत .................और उसका नसीब ....||| बस ख्यालों को सजा डाला मैंने एक प्रेम गीत के रूप में || आइये आप भी इस वियोग सृंगार का आनंद लीजिये ||

No comments:

Post a Comment