प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया है। प्रेम की ऊर्जा से ही प्रकृति निरंतर पल्लवित, पुष्पित और फलित होती है। युगों से चली आ रही प्रेम कहानियाँ आज भी बदस्तूर जारी हैं। प्रेम की अनुभूति अपने आपमें बिरली, अद्वितीय और बेजोड़ है। किसी से प्यार करना या प्यार में होना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है।
यह क्यों होता है? कैसे होता है? कब होता है? किससे होता है?
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क्या ज़रूरत जानने की.
देखिये एक नये तरह से सृजित किया है मैंने ये प्रेम गीत ...
और हाँ कल पक्का कुछ आज के सामाजिक सरोकार वाली पोस्ट..
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प्रिय पास बैठो गुनगुनाओ,
आँखों से आँखे मिलाओ,
जादू फिर एक बार कर दो |१|
रात्रि गहरा तम निकट था,
ये सुनहरा मन विकट था |
आवाज़ तुमको ढूँढती थी,
या झींगरों सी गूंजती थी |
रात्रि बीती भोर निखरी,
सुनहरी नव धूप बिखरी |
अब तो तुम सृंगार कर दो |२|
जादू फिर एक बार कर दो ...................
दर्पण में खुद को झाँक लो,
ठहरी ठहरी सी सांस लो |
खिलखिला के हंसो फिर,
उँगलियों को कसो फिर |
देहरी को आना लांघती,
बन्धन सारे तुम तोड़ती |
जीवन ये तुम वार कर दो |३|
जादू फिर एक बार कर दो ...................
आओ हथेली को मिलाकर,
जीवन परिधि को सजाकर |
है भाग्य से एक बात बोले,
रहस्यमय एक राज़ खोलें |
साथ जन्मों का लिखा है,
भाग्य रेखा में दिखा है |
नूतन खिला संसार कर दो |४|
जादू फिर एक बार कर दो ||
क्या ज़रूरत जानने की.
देखिये एक नये तरह से सृजित किया है मैंने ये प्रेम गीत ...
और हाँ कल पक्का कुछ आज के सामाजिक सरोकार वाली पोस्ट..
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प्रिय पास बैठो गुनगुनाओ,
आँखों से आँखे मिलाओ,
जादू फिर एक बार कर दो |१|
रात्रि गहरा तम निकट था,
ये सुनहरा मन विकट था |
आवाज़ तुमको ढूँढती थी,
या झींगरों सी गूंजती थी |
रात्रि बीती भोर निखरी,
सुनहरी नव धूप बिखरी |
अब तो तुम सृंगार कर दो |२|
जादू फिर एक बार कर दो ...................
दर्पण में खुद को झाँक लो,
ठहरी ठहरी सी सांस लो |
खिलखिला के हंसो फिर,
उँगलियों को कसो फिर |
देहरी को आना लांघती,
बन्धन सारे तुम तोड़ती |
जीवन ये तुम वार कर दो |३|
जादू फिर एक बार कर दो ...................
आओ हथेली को मिलाकर,
जीवन परिधि को सजाकर |
है भाग्य से एक बात बोले,
रहस्यमय एक राज़ खोलें |
साथ जन्मों का लिखा है,
भाग्य रेखा में दिखा है |
नूतन खिला संसार कर दो |४|
जादू फिर एक बार कर दो ||