Monday, January 16, 2017

प्रेम एक शाश्वत भाव, कल भी था आज भी है और कल भी रहेगा।

प्रकृति के कण-कण में प्रेम समाया है। प्रेम की ऊर्जा से ही प्रकृति निरंतर पल्लवित, पुष्पित और फलित होती है। युगों से चली आ रही प्रेम कहानियाँ आज भी बदस्तूर जारी हैं। प्रेम की अनुभूति अपने आपमें बिरली, अद्वितीय और बेजोड़ है। किसी से प्यार करना या प्यार में होना दुनिया का सबसे खूबसूरत अहसास है।
यह क्यों होता है? कैसे होता है? कब होता है? किससे होता है?
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क्या ज़रूरत जानने की.
देखिये एक नये तरह से सृजित किया है मैंने ये प्रेम गीत ...
और हाँ कल पक्का कुछ आज के सामाजिक सरोकार वाली पोस्ट..
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प्रिय पास बैठो गुनगुनाओ, 
आँखों से आँखे मिलाओ,
जादू फिर एक बार कर दो |१|

रात्रि गहरा तम निकट था,
ये सुनहरा मन विकट था |

 
आवाज़ तुमको ढूँढती थी,
या झींगरों सी गूंजती थी |

 
रात्रि बीती भोर निखरी,
सुनहरी नव धूप बिखरी |

अब तो तुम सृंगार कर दो |२|
जादू फिर एक बार कर दो ...................

दर्पण में खुद को झाँक लो,
ठहरी ठहरी सी सांस लो |


खिलखिला के हंसो फिर,
उँगलियों को कसो फिर |


देहरी को आना लांघती,
बन्धन सारे तुम तोड़ती |
जीवन ये तुम वार कर दो |३|

 जादू फिर एक बार कर दो ...................

आओ हथेली को मिलाकर,
जीवन परिधि को सजाकर |


है भाग्य से एक बात बोले,
रहस्यमय एक राज़ खोलें |


साथ जन्मों का लिखा है,
भाग्य रेखा में दिखा है |


नूतन खिला संसार कर दो |४|

जादू फिर एक बार कर दो ||

Monday, January 9, 2017


गुनगुनी धुप और कोहरे की शरारत का मौसम
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जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेटकर,
आँखों में खींचकर तेरे आँचल के साए को,
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिए हुए,
दिल ढूंढता है फिर वो ही फुर्सत के रात दिन....गुलज़ार 


बड़े नसीब वाले हैं हम भारतीय, जिन्हें मौसमों के मिजाज़ के कई रूप देखने को मिल जाते हैं. वैसे मुझे तो सर्दियां बहुत पसंद है. एक अजीब सा रहस्य होता है, इस मौसम में. धुंध में ढकी, छुपी सडकें कितनी रहस्यमयी लगती हैं. ना आगाज़ का पता, ना अंजाम का. वैसे जिंदगी भी तो वही मज़ा देती है, जहां ना आगाज़ का पता हो ना अंजाम का.
एकदम अनजान मुसाफिरों की तरह, जाने कहाँ से आना और जाने कहाँ को जाना.
दोस्तों मुझे ऐसा लगता है,कि मेरी आजकल की पोस्ट्स कुछ अलग रूमानियत की और ले जा रही हैं. कुछ अजीब भी लगता होगा आपको, कि मेरे सामाजिक सरोकार कहाँ गए. सच बताऊँ सारा दिन हम सब एक ही ट्रैक में तो रहते हैं.

अब आप ही सोचिये, हम क्यूँ ना नज़र डालें, आसपास होने वाले हर परिवर्तन पर.
जीवन के हर आनंद को जी भर कर जी लो....
किसको पता कल हो ना हो....

Saturday, January 7, 2017

 नया खोजने को जो हम चले 
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समय की गति अजीब है मित्रों, मन को अच्छा नहीं लगता, मगर पुरानी दोस्तियां पीछे छूटती जाती हैं. और एक वक़्त ऐसा आता है जब पुराने मतलबों के बेमतलबपने के मुहाने पहुंचकर सामने उदासियों का जैसे एक पूरा समंदर खुल जाता है. देखिए उसे जी भरकर जितना देख सकते हों.

शायद पुरानी दोस्तियां बनी भी रहती हैं, लेकिन एक बैलगाड़ी की तरह जिसे दो अलग अलग विचारों के बैल खीचने की कोशिश कर रहे हों.
सभ्यताएं और सम्बन्ध बहुधा इन्हीं खड़खड़ाती बैलगाड़ि‍यों से बंधी, खिंची, चली चलती हैं. और उनके होने, बने रहने का कुछ समय तक भरम बना रहता है. बस वैसे ही जैसे आईने में चेहरे पर हाथ फेर खुद को 'बुरा नहीं लग रहा' का विचार करते रहना, और धीरे धीरे चले जाना पुराने वक़्त के समंदर की तलहटी पर.
ना जाने किस तलाश में हम कभी पीछे मीलों भागते हैं, तो कभी सालों आगे. इसी तलाश में दीवाना होते रहने का अव्याख्यायित रहस्य भरा संगीत है जीवन, जो ज़ाहिर है, कभी मनों को हंसाता है और कभी रुलाता है.
खैर आइये चले थोड़ी दूर इस सृजन के साथ ....

Tuesday, January 3, 2017

एक मुक्तक आई बी एन 7/ न्यूज़ इंडिया चैनल के नाम