Monday, January 9, 2017


गुनगुनी धुप और कोहरे की शरारत का मौसम
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जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेटकर,
आँखों में खींचकर तेरे आँचल के साए को,
औंधे पड़े रहे कभी करवट लिए हुए,
दिल ढूंढता है फिर वो ही फुर्सत के रात दिन....गुलज़ार 


बड़े नसीब वाले हैं हम भारतीय, जिन्हें मौसमों के मिजाज़ के कई रूप देखने को मिल जाते हैं. वैसे मुझे तो सर्दियां बहुत पसंद है. एक अजीब सा रहस्य होता है, इस मौसम में. धुंध में ढकी, छुपी सडकें कितनी रहस्यमयी लगती हैं. ना आगाज़ का पता, ना अंजाम का. वैसे जिंदगी भी तो वही मज़ा देती है, जहां ना आगाज़ का पता हो ना अंजाम का.
एकदम अनजान मुसाफिरों की तरह, जाने कहाँ से आना और जाने कहाँ को जाना.
दोस्तों मुझे ऐसा लगता है,कि मेरी आजकल की पोस्ट्स कुछ अलग रूमानियत की और ले जा रही हैं. कुछ अजीब भी लगता होगा आपको, कि मेरे सामाजिक सरोकार कहाँ गए. सच बताऊँ सारा दिन हम सब एक ही ट्रैक में तो रहते हैं.

अब आप ही सोचिये, हम क्यूँ ना नज़र डालें, आसपास होने वाले हर परिवर्तन पर.
जीवन के हर आनंद को जी भर कर जी लो....
किसको पता कल हो ना हो....

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