Friday, June 1, 2018

रिश्ते जब रिसते हैं,
हम सब  पिसते हैं.|

आखिर क्या है ये रिश्तों के मध्य जीतने की गणित . कौन सा फार्मूला लगता है और कैसे हम निभा ले जाते हैं .
शायद ये आत्म चिन्तन का विषय है, या फिर मनोवैज्ञानिको के लिए "TRANSACTION ANALYSIS" को समझाने का एक और मौका....जो भी हो... कुछ टूटे फूटे शब्दों से एक गीत बना है. नज़र डालिए.



मन बहका बावरा जाने क्यूँ,
जाने, मन को क्या पाना था |
बस सम्बन्धों केअनुबंधों में,
पल दो पल को इतराना था ||

म्रग तृष्णा सा संसार दिखे,
रिश्तों में भी व्यापार दिखे |
संयम खो बैठे आज अगर,
शब्दों में भी औज़ार दिखे |

अपनी मर्जी से सोचो तुम,
क्या हमें तुम्हे बहकाना था |
मन बहका बावरा जाने क्यूँ,
जाने, मन को क्या पाना था |१|

बात रहे यदि मर्यादा की,
ना थोड़ी, ना ज़ियादा की |
कहां कौन फिर मौन रहे,
लाज रखी यदि वादा की |

निभा सका ना जो इसको,
उसे जीवन भर पछताना था |
मन बहका बावरा जाने क्यूँ,
जाने, मन को क्या पाना था |२|