Saturday, January 11, 2014

 

अक्षर मिलकर शब्द गुने

 

अक्षरों और शब्दों के साथ विचारों की उठा पटक

 

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मन के पीछे चलने वाले मन के साथ भटकना कैसा

मन के मनके मन से मन तक .........११ जनवरी २०१४

Thursday, January 9, 2014

श्रृंगार रस ... जीवन में संयोग और वियोग नियति के दो चक्र है .सम्पूर्ण विरोधाभास होते हुए भी उनमे व्याप्त रसों का आनन्द अद्भुत है , अतुलनीय है अगर संयोग का संगम है तो विरह की वेदना भी ...! फिलहाल संयोग का आनंद इस कविता में


दोस्ती .......सारे संबंधो से इतर ......


मन के मनके
मन से मन तक

 
जीवन का अनवरत चक्र हमें न जाने किन किन गलियों और रास्तों से निकालता  है ,और जाने अनजाने कहाँ किस मोड़ पर लाकर छोड़ देता है, कि हम संज्ञाशून्य हो जाते है, कि अब हमारी अगली मंजिल अगली उड़ान क्या होगी ! एक छोटे शहर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने से लेकर मुंबई प्रवास तक जीवन ने अनगिनत स्याह और श्वेत रंगों को अपने  आँचल  में संजोया है ! अब समय अपनी सीमाओं से मुझे एक छोटी आज़ादी प्रदान कर रहा है तो मुझे भी अपने अनुभवों और अभिव्यक्ति के संचयन हेतु अपनी सीमाओं से बाहर आकर लेखनी उठानी ही होगी !