Thursday, January 9, 2014

मन के मनके
मन से मन तक

 
जीवन का अनवरत चक्र हमें न जाने किन किन गलियों और रास्तों से निकालता  है ,और जाने अनजाने कहाँ किस मोड़ पर लाकर छोड़ देता है, कि हम संज्ञाशून्य हो जाते है, कि अब हमारी अगली मंजिल अगली उड़ान क्या होगी ! एक छोटे शहर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने से लेकर मुंबई प्रवास तक जीवन ने अनगिनत स्याह और श्वेत रंगों को अपने  आँचल  में संजोया है ! अब समय अपनी सीमाओं से मुझे एक छोटी आज़ादी प्रदान कर रहा है तो मुझे भी अपने अनुभवों और अभिव्यक्ति के संचयन हेतु अपनी सीमाओं से बाहर आकर लेखनी उठानी ही होगी !
 
 
 
 
 
 


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