Thursday, January 9, 2014
श्रृंगार रस ... जीवन में संयोग और वियोग नियति के दो चक्र है .सम्पूर्ण विरोधाभास होते हुए भी उनमे व्याप्त रसों का आनन्द अद्भुत है , अतुलनीय है अगर संयोग का संगम है तो विरह की वेदना भी ...! फिलहाल संयोग का आनंद इस कविता में
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