Thursday, December 8, 2016

वो प्यार का मौसम कहाँ गया, अभिसार का मौसम कहाँ गया

प्रेम तुम क्यूँ मर रहे हो ?
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वो कभी कहते थे, कि प्रेम किसी एक तराज़ू से नहीं तौला जा सकता, ना ही किसी नियम से नियमित किया जा सकता है | ये तो विहंगम भाव है | अनगिनत फूलों की खुशबू, रंग-बिरंगी उड़ती तितलियाँ, भौरों की गुंजन, इठलाते काले बादल, मन को हर्षाती ठंडी-ठंडी बयार और तन को भिगोती बरखा की फुहारें,चाँद की सोलह कलाएं, कहाँ कहाँ नहीं नज़र आता है प्यार प्रणय के शुरूआती दिनों में | पर वक़्त के साथ साथ सब कुछ क्यूँ बदलने लगता है | रूमानियत, अहसास, इशारों को समझने वाली बातें, सब की सब वक़्त निगल आता है और हमें बना जाता है बस एक मशीन | काश की ऐसा हो कि वापस लौटें और फिर गुनगुनाये ...... प्यार हुआ इकरार हुआ ...है प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल.......( ये पोस्ट मेरे सभी शादीशुदा मित्रों के लिए है, और उसमे भी जिन्होंने अपनी शादी की कम से कम १० सालगिरह मना ली है )

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