मन की गांठे खोल ..(संबंधों का ट्रांजैक्शन अनालिसिस)
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अक्सर हमारे साथ होता है, कि हमारे आपसी रिश्ते बहुत बनते बिगड़ते रहते
हैं| काश ऐसा हो की रिश्ते कभी किसी के साथ बिगडें ही नहीं | और जिस दिन हम
अपने आप को इस कद तक ले गए की रिश्ते बिगड़ने ही बंद हो जाएँ, शायद वही
हमारे जीवन का परम सुख होगा | सोचिये जैन मुनि तरुण सागर जी ने विशाल
ददलानी की बातों को कुछ सोचा ही नही | क्षमा भाव की ऐसी स्थिति तक पहुचना
बहुत बड़ा संकल्प है | काश हम सब ऐसे हो जाए और गांधी जी की इगैलिटेरियन
सोसाइटी की कल्पना को साकार रूप दे सकें | चलो अगर उतना न सही, तो कुछ कदम
तो आगे बढें | सोचिये बस कोई दो रिश्ते जहाँ आप आसानी से वापसी कर सकें |
शायद यही फोर्गिवेनेस है और यही मूल मंत्र है असली जीवन का... कुछ ऐसे ही
ख्यालों को कविता के रूप में सजाया है आपके लिए
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