Thursday, December 8, 2016


वक़्त बदलने को हर व्यक्ति बेकरार है
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आज कानपुर से मेरठ का सफ़र बहुत अजीबो गरीब रहा |
शायद दो दिन के अवकाश या फिर उम्मीदों का आभास, बहुत भीड़ थी हर बैंक में हर ए टी एम् में | रास्ते में शायद फिरोजाबाद या सिरसागंज में एक बैंक प्रथम तल पर थी और बंद थी, ऊपर बैंक तक पहुचने के तो रास्ते थे, यानी की दोनों तरफ जीना वो भी बहुत संकरा |
एक तरफ महिलाओं की भीड़ और दूसरी तरफ आदमियों की | शायद उन पंद्रह सीढ़ियों में 50- 50 लोग खड़े हुए थे | और बेतहाशा भीड़ नीचे |
कितना यातनादायक | उन महिलाओं के लिए जिन्होंने अपने बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजा होगा और लग गयी होंगी आकर उम्मीदों की टोकरी लेकर |
काश हम सब की उम्मीदों को इस बार नव आकाश मिले | कुछ आधारभूत, मूल चूल परिवर्तन नज़र आये | कुछ तो हो की अपने ही देश में गिरमिटिया बनी बहुत बड़ी जनसँख्या एक नयी सुबह, खुली हवा में साँसे ले सके |||

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