शब्द युगों तक बंद रखे थे
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अज़ब दौर था वो मोहब्बत की रवाज़ों का| दिल धडकते रहते थे और जुबां खामोश |
हर कोई इश्क़ में नहीं होता था और न हर किसी में इश्क़ करने का साहस होता
था । और अगर इश्क हो गया तो इज़हार .........| अरे कहाँ हो पाता था जनाब |
बस चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद ....| तो आज कुछ ऐसा ही लिख रहा हूँ
आपके लिए | पर मेरी लेखनी विशुद्ध हिंदी है और आज तो शब्दों में क्लिष्टता
भी शायद ज़्यादा हो गयी है, पर मेरा विश्वास है, मुझे आपसे कहना नहीं पड़ेगा
कि, " भावनाओं को समझो ".
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